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मैंने भी जीवन देखा है / हरिवंशराय बच्चन

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मैंने भी जीवन देखा है!

अखिल विश्व था आलिंगन में,
था समस्त जीवन चुम्बन में
युग कर पाए माप न जिसकी मैंने ऐसा क्षण देखा है!
मैंने भी जीवन देखा है!

सिंधु जहाँ था, मरु सोता है!
अचरज क्या मुझको होता है?
अतुल प्यार का अतुल घृणा में मैंने परिवर्तन देखा है!
मैंने भी जीवन देखा है!

प्रिय सब कुछ खोकर जीता हूँ,
चिर अभाव का मधु पीता हूँ,
यौवन रँगरलियों से प्यारा मैंने सूनापन देखा है!
मैंने भी जीवन देखा है!