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मैं अंगारा तुम अगर तपन से प्यार करो तो आजाना / ललित मोहन त्रिवेदी

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मैं अंगारा तुम अगर तपन से प्यार करो तो आजाना !
मैं जैसा हूँ, मुझे वैसा ही स्वीकार करो तो आजाना !!

जो चना चबैना तक सीमित वो मेरा चना चबैना क्या
जो लेना-देना करता हो फ़िर उससे लेना-देना क्या
मेरी ही तरह अगर तुम भी व्यापार करो तो आजाना .......

मन में आकाश भरा है पर है धरा न पाँवों के नीचे
मैं अनहद तक आ पहुंचा हूँ लेकिन आँखें मीचें-मीचें
तुम धरती बनकर कुछ मेरा आधार करो तो आजाना ..........

मैं ऊब चुका हूँ प्यालों से, दम घुटने लगा सवालों से
अबतो बातें करना चाहूँ, अपने अंतर के छालों से
तुम ओस कणों की ठंडी सी बौछार करो तो आजाना ..........

माना तुम हारे हुए नहीं, लेकिन यह कोई जीत नहीं
मृत्यु में किसी की प्रीत नहीं, फ़िर क्यों जीवन संगीत नहीं ?
तुम ऐसे ऐसे प्रश्नों से दो चार करो तो आजाना ...............

मैं वरदानों को दान समझ स्वीकार नहीं कर पाऊंगा
व्यापार बुद्धि से समझौता मन मार नहीं कर पाऊँगा
तुम होम अगर कर्तव्यों पर अधिकार करो तो आजाना ...........

मैं बहुत थका हूँ इस भ्रम में, साधारण नहीं अनूठा हूँ
इसलिए अभी तक जग से क्या, ख़ुद से भी रूठा-रूठा हूँ
तुम मान नहीं, मुझसे केवल मनुहार करो तो आजाना ..........

या तो ढोल ढमाके हैं, या फ़िर गुमसुम सन्नाटे हैं
मैं चाहे जिसके साथ रहूँ, मुझको घाटे ही घाटे हैं
तुम हौले-हौले झांझर की झनकार करो तो आजाना ............

मैं घोर यातना में बंदी, अभिशप्त प्रेत की छाया हूँ
मैं शापभृष्ट गन्धर्व कहीं से भटक यहाँ पर आया हूँ
आंसू से तर्पण कर मेरा उद्धार करो तो आजाना ............