भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं अचानक जाग उठा था / इवान बूनिन
Kavita Kosh से
|
मैं अचानक जाग उठा था बिन कारण ही
कोई उदास-सा सपना देखा था शायद मैंने
पतझड़ का मौसम, पेड़ झलकाएँ नंगापन ही
धुँधला चाँद खिड़की से झाँके, पहने था गहने
पतझड़ में शांत खड़े थे घर-बंगला औ' बाड़ी
अर्धरात्रि में मृत पड़े थे सब पेड़ औ' झाड़ी
पर राह भटके बच्चे-सा कहीं चीख़ रहा था
दूर वन में, काँव-काँव..., एक कौआ अनाड़ी
(1903)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय