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मैं इतना ही जानता हूँ उस शहर को / सुनील श्रीवास्तव

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दोस्त
उस शहर के बारे में लिखना
तो पूरा-पूरा लिखना

इलाहाबाद के बारे में लिखना
कि एक कवि,
जिसकी माँ मर चुकी थी,
को अच्छा लगा था यह शहर

गंगा के बारे में लिखना
कि वह सुन्दर है
अब तक लिखी गईं
सभी कविताओं से सुन्दर

उन नुक्कड़ों के बारे में लिखना
तो लिखना कि एक रुपये में
आज भी कहीं
मिलती है अच्छी चाय

साधुओं-संन्यासियों के बारे में
चाहो तो मत लिखना
वे अलग नहीं हैं अयोध्या के साधुओं से

मस्जिदों और मन्दिरों के बारे में
मेरी यही राय है

रिक्शावालों के बारे में ज़रूर लिखना
लिखना कि उन्हें
अब तक याद है
निराला की पँक्तियाँ

दोस्त,
उस ज़िन्दादिल शहर के बारे में
जब भी लिखना
दिल से लिखना

और आख़िर में शेषनाथ के बारे में लिखना
सारा ज़माना लगा है जिसे
इलाहबाद से हटाने के वास्ते
उसके बारे में लिखना
कि वह नायाब है
अपनी तमाम नाकामियों के बावजूद
और उसके होने से
बस, एक उसके होने से
बर्दाश्त के क़ाबिल है यह दुनिया ।