मैं इस तरह मर चुका हूँ कि लौट आने का मन नहीं,
आऊँ तो तुम्हें ही वापस पाऊँगा,
तुम्हारे विवर्ण वक्ष में मृत एक शहर की तस्वीर देखूँगा।
किससे कहूँगा? किस मरी मछली की आँखों में तैरती नदी से?
नदी मरेगी जब, तब मैं किसका दुःखभागी सहचर बनूँगा भला?
पूछूँ या न पूछूँ सुदक्षिणा?
पूछकर ही क्या जान पाऊँगा?
किसके ओठों पर आज
इतनी पुरानी वेदना?
मैं इस तरह मर चुका हूँ कि लौट आने का मन नहीं,
आऊँ तो तुम्हें ही वापस पाऊँगा,
तुम्हारे हृदय की रेती में मरी मछली के काँटों की यादगार बनूँगा।
समीर ताँती की कविता : ’মই এনেকৈ মৰি গৈছো যে]’ म'इ एनेकइ मरि गइसों जे का अनुवाद
शिव किशोर तिवारी द्वारा मूल असमिया से अनूदित