भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं एकलव्य हूँ / निकिता नैथानी
Kavita Kosh से
मैं एकलव्य हूँ ।
अभिशापित बनाया गया हूँ,
इस व्यवस्था के द्वारा
हमेशा से दबाया गया है मुझे,
कुचला गया है मेरे विचारों को ।
मेरे सामर्थ्य व सपनों को तोड़कर
खड़े किए जाते रहें हैं
कई अर्जुनों के महल
समय व इतिहास ने इतना
लम्बा सफ़र तय कर लिया है
लेकिन मै जहाँ का तहाँ खड़ा हूँ
बस, फ़र्क इतना है कि
राजा के स्थान पर मन्त्री
गुरुकुल के स्थान पर विश्वविद्यालय
गुरु के स्थान पर प्रशासन और
अँगूठे के स्थान पर आत्महत्या …।