भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं एकांकी दुखान्तिका हूं / राम लखारा ‘विपुल‘
Kavita Kosh से
कथा, कथानक, पात्र सभी है लेकिन इतना अंतर है।
मैं एकांकी दुखान्तिका हूं तुम सुखमयी कहानी हो।
जीवन की वीणा की तारे
आपस में उलझाई है।
एक तुम्हारे दम पर हमने
उलझ उलझ सुलझाई है।
लेकिन इतना भाग्य नहीं था
इक दूजे के हो पाते,
हो जाता गर इतना तो फिर
हम भी सुख से सो पाते।
मैं जाड़े का पाला हूं तुम पुरवा पवन सुहानी हो।
मैं एकांकी दुखान्तिका हूं तुम सुखमयी कहानी हो।
लहरों से लड़कर साहिल तक
आ भी जाते मीत मगर।
हाथ तुम्हारे बढ भी जाते
प्रिये हमारी ओर अगर।
तुम साहिल पर खड़ी रही पर
हमको पार उतरना था,
इतनी सी थी बात कि तुमको
जीना हमको मरना था।
मैं भोली इक चालाकी हूं तुम सोची नादानी हो।
मैं एकांकी दुखान्तिका हूं तुम सुखमयी कहानी हो।