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मैं ऐसा हूँ विरुद्ध मैं वैसा होता / राजर्षि अरुण
Kavita Kosh से
पत्थर ही नहीं
हर चीज़ को सर नवाते फिरता हूँ मैं
कितना ग़रीब और बेबस बना दिया है
ईश्वर ने मुझे
झुकना प्रेम से, प्रार्थना में
कितना कठिन हो गया है
ईश्वर के संभावित अस्तित्व का ख़ौफ़
इतना लद जाता है मन पर
कि सर पत्थर तक जा गिरता है ।
मैं नहीं समझ पाता
डरना चाहिए अपने पिता से
या उद्दंडतापूर्वक अपराध करके
क्षमा माँगने का ढोंग करना चाहिए
या माध्यम बनाकर किसी को
अपनी भूल बेच देनी चाहिए
ईश्वर के बाज़ार में
और खोजना चाहिए
झूठे पश्चात्ताप का मूल्य ।
जो भी हो
अगर मैं ऐसा हूँ तो इसलिए कि
मैं ऐसा हूँ
अगर मैं वैसा होता तो इसलिए कि
मुझ पर ईश्वर की कृपा होती ।