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मैं और तुम / आभा पूर्वे

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तुमने
मेरा परिचय
अक्षर से कराया था
और मैं
शब्दों की गलियों से
गुजरती हुई
वाक्य के चैड़े
और विशाल
रास्ते से होते हुए
कविता की मंजिल तक
पहुँच गई हूँ
पढ़ती हूँ अपनी ही
कविता को
जिस कविता की ध्वनि
तुम हो
और
इसका रस भी
तुम ही ।