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मैं कहाँ पर, रागिनी मेरा कहाँ पर / हरिवंशराय बच्चन
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मैं कहाँ पर, रागिनी मेरी कहाँ पर!
है मुझे संसार बाँधे, काल बाँधे
है मुझे जंजीर औ' जंजाल बाँधे,
किंतु मेरी कल्पना के मुक्त पर-स्वर;
मैं कहाँ पर, रागिनी मेरी कहाँ पर!
धूलि के कण शीश पर मेरे चढ़े हैं,
अंक ही कुछ भाल के कुछ ऐसे गढ़े हैं
किंतु मेरी भवना से बद्ध अंबर;
मैं कहाँ पर, रागिनी मेरी कहाँ पर!
मैं कुसुम को प्यार कर सकता नहीं हूँ,
मैं काली पर हाथ धर सकता नहीं हूँ,
किंतु मेरी वासना तृण-तृण निछावर;
मैं कहाँ पर, रागिनी मेरी कहाँ पर!
मूक हूँ, जब साध है सागर उँडेलूँ,
मूर्तिजड़, जब मन लहर के साथ खेलूँ,
किंतु मेरी रागिनी निर्बंध निर्झर;
मैं कहाँ पर, रागिनी मेरी कहाँ पर!