मैं कुछ नहीं हूँ 
और अपने इस कुछ नहीं को 
जीना चाहता हूँ 
मैं अपने 	
कुछ न होने जैसे इस होने पर 
तरंगित होना चाहता हूँ 
जीवन एक उत्सव है 
प्राप्ति और अप्राप्ति के 
किसी चक्कर में पड़कर 
घनचक्कर नहीं बनना चाहता हूँ 
खाली और विशाल स्टेडियम में 
क्रिकेट ग्राउंड के 
गोल-गोल घूमते हुए 
भरी दुपहरी में मैं यही सोच रहा हूँ
मेरी पत्नी कुछ काम से 
बाजार गई है 
घर की चाबी उसी के पास है
और जबतक वह आ न जाए
तब तक मैं  बेघर हूँ  
और खुद को बेघर 
अनुभव करना चाहता हूँ 
उतनी देर शिद्दत से 
घरविहीन होने की इस बेचैनी और 
असुविधा को 
जीना चाहता हूँ भरपूर 
इन आवारा, एकांत पलों में 
मैं कुछ नहीं हूँ 
और अपने इस कुछ नहीं को 
अपने लिए एक वरदान मानता हूँ
स्टेडियम में बहती हवा 
और चारों तरफ फैले 
धूप के साम्राज्य को 
ही अपना धन मानता हूँ 
मैं किसी देश का प्रधानमंत्री नहीं, 
किसी राज्य का मुख्यमंत्री नहीं 
किसी संस्था का प्रमुख नहीं 
और भविष्य में ऐसा कुछ बनने की 
मुझमें कोई संभावना नहीं 
और फिलवक्त तो 
किसी घर का मालिक भी नहीं 
मैं कोलतार की सड़क से 
सप्रयत्न थोड़ा दूर हटकर
धूल और रेत की पगडंडी पर 
तेज तेज चल रहा हूँ 
बड़े-बड़े वृक्षों और उसके नीचे पसरी 
घास की गंध को 
अपने नथुनों में भरता हुआ
मैं अपने इस एकांत को 
पेड़ों की अनथक हरीतिमा और 
अपनी रिक्तता को 
धूप की निःस्वार्थ उदारता से 
भरना चाहता हूँ 
इस वक्त मेरे लिए 
इनसे खूबसूरत उपहार 
कुछ नहीं हैं 
अगले पल का तो कोई पता नहीं 
मगर इस समय मैं आजाद हूँ 
बोर्डर पर सोने के वर्क किए हुए 
चाँदी के अंतहीन वस्त्र  
लपेटे यह धूप 
मुझ पर अपनी नेह-वर्षा कर रही है 
पसीने से तर-ब-तर मैं 
भागा जा रहा हूँ 
इस उम्मीद में कि 
असमय बढ़ आई मेरी तोंद 
कुछ कम हो सके 
और इसकी चिंता 
मुझे ही करनी होगी
हालाँकि मैं देश का प्रधानमंत्री नहीं हूँ
और जानता हूँ मेरे बेडौल होने से 
देश बेडौल नहीं हो जाएगा 
और  न ही कोई ‘स्टार’ 
जिसे फिल्मों में 
काम मिलना बंद हो जाए
बस अपने स्वास्थ्य की खातिर 
और उससे भी अधिक यह कि 
मुझे इस समय तेज 
चलना अच्छा लग रहा है
गाड़ियों की छलावे से 
भरी रफ्तार के बीच 
मुझे मेरे पैरों को 
यूँ उदास और अकेला 
नहीं छोड़ना है 
वरना मेरे पैरों का हश्र भी 
एक दिन 
इस देश के आदिवासियों का सा  
हो जाएगा 
इस समय मैं गतिमान हूँ 
खुद के साथ 
और उन्मुक्त इस खुली आबोहवा में  
यह एकांत और खुली दोपहर ही 
मेरा प्राप्य है 
और मैं अपने इस हासिल पर 
प्रसन्न हूँ 
 
मैं कुछ नहीं हूँ 
और कुछ होना भी नहीं चाहता हूँ 
बस इस दुपहरी में 
स्टेडियम के दो-तीन 
चक्कर काट लेना चाहता हूँ 
किसी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैच की 
हलचल से फिलहाल मुक्त 
इस स्टेडियम का 
मैं आभार मानता हूँ 
जिसके विस्तृत 
और खुले परिसर में आकर
मैं कुछ देर के लिए 
शहर के कसाव से मुक्त रह सका  
जो इस वक्त मेरे लिए सुलभ है 
जब मेरे पास कहीं जाने के लिए 
कोई घर नहीं है ।