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मैं कुछ बेहतर ढूँढ़ रहा हूँ / विज्ञान व्रत
Kavita Kosh से
मैं कुछ बेहतर ढूँढ़ रहा हूँ
घर में हूँ घर ढूँढ़ रहा हूँ
घर की दीवारों के नीचे
नींव का पत्थर ढूँढ़ रहा हूँ
जाने किसकी गरदन पर है
मैं अपना सर ढूँढ़ रहा हूँ
हाथों में पैराहन थामे
अपना पैकर ढूँढ़ रहा हूँ
मेरे क़द के साथ बढ़े जो
ऐसी चादर ढूँढ़ रहा हूँ