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मैं कोई छूट नहीं पा सकता / केशव तिवारी
Kavita Kosh से
वे जिस दिन जागेंगे
मुझसे भी मांगेंगे हिसाब
मेरे कहे हर शब्द को
रखेंगे कटघरे में
इन पर कविता लिखकर
मैं कोई छूट नहीं पा सकता
मित्रों ! यदि कलम को सलीब से
अपनी गर्दन को बचाने का
औजार बना रहे हो
तो तुम तलवार को
ढाल की तरह इस्तेमाल करना चाहते हो
और याद रखना ढाल कभी भी
तलवार नहीं बन सकती |