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मैं खिड़की से देख रहा हूँ / अभिषेक औदिच्य

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अंतस में कोलाहल लेकर, मुख पर साधे मौन खड़ा है,
मैं खिड़की से देख रहा हूँ, दरवाजे पर कौन खड़ा है।

दोनों में है प्रेम परस्पर,
दोनों में सम्मान परस्पर।
किंतु बीच में आ जाता है,
दोनों का अभिमान परस्पर।
दिल के सब उद्गार कंठ तक,
आकर वापस लौट रहे हैं।

शायद होठ सिये दोनों के ईगो वाला टोन खड़ा है,
मैं खिड़की से देख रहा हूँ, दरवाजे पर कौन खड़ा है।

अधिकारों की खातिर झगड़े,
सम्बंधों के मुख्य तत्व हैं।
तर्क और वैचारिक बातें,
अनुबंधों के मुख्य तत्व हैं।
संवादों में जो कमियाँ थीं,
अब शायद वे नहीं रहेंगीं।

नंबर डायल करने को वह, लिए हाथ में फोन खड़ा है,
मैं खिड़की से देख रहा हूँ, दरवाजे पर कौन खड़ा है।