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मैं गाता, शून्य सुना करता / हरिवंशराय बच्चन
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मैं गाता, शून्य सुना करता!
इसको अपना सौभाग्य कहूँ,
अथवा दुर्भाग्य इसे समझूँ,
वह प्राप्त हुआ बन चिर-संगी जिससे था मैं पहले डरता!
मैं गाता, शून्य सुना करता!
जब सबने मुझको छोड़ दिया,
जब सबने नाता तोड़ लिया,
यह पास चला मेरे आया सब रिक्त-स्थानों को भरता!
मैं गाता, शून्य सुना करता!
मेरे मन की दुर्बलता पर--
मेरी मानी मानवता पर--
हँसता तो है यह शून्य नहीं, यदि इस पर सिर न धुना करता!
मैं गाता, शून्य सुना करता!