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मैं चलूँगी / पद्मजा शर्मा
Kavita Kosh से
मैं समझ गई हूँ, मेरे पाँवों में सत है
बेड़ियों में जकड़े ये पाँव
थोड़े शिथिल होकर
चलना भूल गये थे
पर इससे क्या
कोशिश करूँगी, धीरे-धीरे सम्भलकर चलूँगी
अब इस डर से उबर रही हूँ मैं
कि ‘गिर गई तो लोग हँसेंगे’
चलने वाला ही तो गिरता है
और रोना तो हँसने वाले को भी पड़ सकता है
सच तो यह है
कि मैं गिरकर उठने को हौसला रखती हूँ
इसलिए चलूँगी
और इस डर से तो कतई नहीं रूकूँगी
कि ‘गिर गई तो लोग हँसेंगे’।