भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं चाहती हूँ मरना तुम से पहले / नाज़िम हिक़मत / श्रीविलास सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(मेरी पत्नी का पत्र)

मैं
चाहती हूँ मरना तुम से पूर्व
मैं
चाहती हूँ मरना तुम से पहले ।
क्या तुम सोचते हो कि जो मरेगा बाद में
पा लेगा उसे जो गया है उससे पहले ?
मैं नहीं सोचती ऐसा ।

बेहतर हो तुम मुझे जला दो
और अपने कमरे में रखो मुझे आतिशदान पर
एक मर्तबान में।
मर्तबान बना होना चाहिए शीशे का
पारदर्शी, सफेद शीशा
ताकि तुम देख सको मुझे उसके भीतर…

तुम देखो मेरा उत्सर्ग :
मैंने त्याग दिया धरती का एक हिस्सा होने का अधिकार,
मैंने त्याग दिया एक फूल होने का अधिकार
जिससे रह सकती मैं तुम्हारे साथ।
और मैं हो रही हूँ धूल
तुम्हारे साथ जीने को।

बाद में, जब मर जाओगे तुम भी
तुम आना मेरे पास मर्तबान तक ।
और हम जिएँगे साथ साथ
मेरी भस्म में होगी तुम्हारी भस्म
जब तक कि एक लापरवाह दुल्हन
अथवा एक आभारविहीन पौत्र
फेंक न दे हमें वहाँ से बाहर...।

किन्तु हम उतने समय मे मिला डालेंगे एक दूजे को इतना
कि उस कबाड़ में भी जहाँ फेंके गए होंगे हम
हमारे कण गिरेंगे अगल-बगल ।

हम मिट्टी में मिलेंगे साथ साथ
और एक दिन, यदि एक जंगली फूल
जो पोषण लेता है इस मिट्टी से और खिलता है इसमें
निश्चय ही
वहाँ होंगे दो फूल
एक तुम और
एक मैं ।

मैं
लेकिन अभी सोचती नहीं मृत्यु के बारे में।
मैं जन्म दूँगी एक बच्चे को
अभी जीवन आप्लावित है मुझमें।
उबल रहा है मेरा रक्त।
मैं जियूँगी, लम्बे, बहुत लम्बे समय तक
लेकिन तुम्हारे साथ।

मृत्यु भी डराती नहीं मुझे।
किन्तु मुझे पसन्द नहीं
हमारे अन्तिम संस्कार के तरीके।

जब तक मैं मरूँगी मैं सोचती हूँ, ये हो जाएंगे कुछ बेहतर।
क्या कोई आशा है तुम्हारे क़ैद से मुक्त हो जाने की इन दिनों?
एक आवाज़ मेरे भीतर कहती है :
हो सकता है ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह