Last modified on 9 अप्रैल 2013, at 12:01

मैं चुप खड़ा था तअल्लुक़ में इख़्तिसार / मनचंदा बानी

मैं चुप खड़ा था तअल्लुक़ में इख़्तिसार जो था
उसी ने बात बनाई वो होशियार जो था

पटख़ दिया किसी झोंके ने ला के मंज़िल पर
हवा के सर पे कोई देर से सवार जो था

मोहब्बतें न रहीं उस के दिल में मेरे लिए
मगर वो मिलता था हँस कर के वज़ा-दार जो था

अजब ग़ुरूर में आ कर बरस पड़ा बादल
के फैलता हुआ चारों तरफ़ ग़ुबार जो था

क़दम क़दम रम-ए-पामाल से मैं तंग आ कर
तेरे ही सामने आया तेरा शिकार जो था