भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं जो / सेरा टीसडेल / आग्नेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं धूपभरी वादियों से आई
और खुले हुए सागर को खोजना चाहा
क्योंकि मैंने सोचा उसके भूरे विस्तारों से
शान्ति मेरे पास आ जाएगी

अतः मैं सागर के पास आ ही गई
मैंने उसे पाया बर्बर और काला
मैंने निस्पन्द वादियों से चीख़ते हुए कहा —
‘‘दयावान हो जाओ और मुझे लौटा लो’’

लेकिन प्यासा ज्वारभाटा भूमि की ओर दौड़ा
और लवणयुक्त लहरों ने मुझे सोख लिया
और मैं जो बारिश की तरह ताज़ा थी
अब समुद्र की तरह कसैली हो गई हूँ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : आग्नेय