मैं ट्रेन से उतरा / फ़ेर्नान्दो पेस्सोआ
मैं ट्रेन से उतरा
और उस आदमी को अलविदा कहा
जिससे मैं मिला था ।
हम अठारह घण्टे साथ रहे थे
और हमारे बीच हुई थी सुखद बातचीत,
यात्रा का साथ था,
और मुझे दुख था ट्रेन से उतरने का,
खेद था छोड़ के चले आने का
इस संयोग से बने मित्र को,
जिसका नाम तक मैं नहीं जान पाया ।
मैं अपनी आँखों को भीगता महसूस कर रहा था...
हर विदाई एक मृत्यु है ।
हाँ, हर विदाई एक मृत्यु है ।
उस ट्रेन में जिसे हम जीवन कहते हैं,
हम सब एक-दूसरे के जीवन की संयोगिक घटनाएँ हैं,
और हमें दुःख होता है जब उतरने का समय आता है ।
वह सब जो मानवीय है मुझे प्रभावित करता है, क्यूँकि मैं एक मनुष्य हूँ ।
वह सब जो मानवीय है मुझे प्रभावित करता है, इसलिए नहीं कि मुझे
मानवीय भावों या मानवीय मतों से लगाव है
परन्तु इसलिए कि स्वयं मानवता के साथ मेरा असीम संसर्ग है ।
वह नौकरानी जिसका बिलकुल मन नहीं था जाने का,
याद करके रोती है
उस घर को जहाँ उस के साथ दुर्व्यवहार किया गया...
यह सब, मेरे मन में, है मृत्यु और दुनिया का दुख ।
यह सब जीता है, क्यूँकि वह मरता है, मेरे मन में ।
और मेरा मन पूरे ब्रह्माण्ड से बस ज़रा-सा बड़ा है ।