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मैं तथा मैं (अधूरी तथा कुछ पूरी कविताएँ) - 17 / नवीन सागर

वह दरवाजा कब से नहीं देखा
मेरी दस्‍तकें जिसके आगे
धूल में पड़ी हैं
और जिसके पीछे नीम अंधेरे में
हर चीज पर मेरी उंगलियों के निशान हैं.

वह सड़क अभी है
जिस पर मैं हर कदम पर
लौट रहा हूं
वह नहीं जिस पर मैं लगातार
अपने पीछे-पीछे गया.