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मैं तुम्हारा छुआ ख़त हो जाता हूँ / सुरेश चंद्रा
Kavita Kosh से
तुम्हारी आँखों की लिखावट
तुम्हारी आवाज़ का सौंधापन
इनमे लिपटा
तन्हाई के ताखे से, चुपचाप उतरता हूँ
मैं तुम्हारा छुआ ख़त हो जाता हूँ
सिहरता हूँ
बारहा खुद की सिसकियाँ पढ़ता हूँ
देर तलक़ फिर-फिर तुम सा महकता हूँ