मैं तुम्हारी ही कृपा से... / शिवकुमार 'बिलगरामी'
मैं तुम्हारी ही कृपा से नित्य निर्मल हो रहा हूँ ।
मैं तुम्हारा नेह पाकर और उज्ज्वल हो रहा हूँ ।
भाव सुन्दर और कोमल
जग रहे हैं इस हृदय में,
सद्-विचारों के पखेरू
उड़ रहे हैं मन-निलय में,
मैं तुम्हारी इस दया से भाव विह्वल हो रहा हूँ ।
मैं तुम्हारा पाकर और उज्ज्वल हो रहा हूँ ।
प्रेम की इक दृष्टि से मैं
तृप्त होता जा रहा हूँ,
एक पल के साथ से मैं
सुख युगों का पा रहा हूँ,
मैं तुम्हारी पाद-रज से नित्य निश्छल हो रहा हूँ ।
मैं तुम्हारा नेह पाकर और उज्ज्वल हो रहा हूँ ।
भेद के जो बन्ध थे वो
टूटते ही जा रहे हैं,
और भी अवरोध थे जो
वो किनारा पा रहे हैं,
मैं नदी-सा बह रहा हूँ, नित्य कल-कल हो रहा हूँ ।
मैं तुम्हारा नेह पाकर और उज्ज्वल हो रहा हूँ ।
शक्तियाँ कितनी अलौकिक
जग रही तन में निरन्तर,
पुष्प कितने खिल रहे हैं
दिव्य चेतन मन-पटल पर,
मैं निरन्तर 'ऊँ' का स्वर मन्त्र का बल हो रहा हूँ ।
मैं तुम्हारा नेह पाकर और उज्ज्वल हो रहा हूँ ।