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मैं तुम्हें ख़ुद से ज़्यादा चाहता हूँ / दयानन्द पाण्डेय
Kavita Kosh से
पीना-पिलाना अच्छा है पर कभी-कभी
हँसना हँसाना अच्छा है पर कभी-कभी
मैं तुम्हें ख़ुद से ज़्यादा चाहता हूँ ऐसा
झूठ बोलना भी अच्छा है पर कभी-कभी
प्यार करना, प्यार में जीना और तड़पना
प्यार में मरना अच्छा है पर कभी-कभी
इश्क-मुश्क और जीना मरना अच्छा है
प्यार में धोखा भी अच्छा है पर कभी-कभी
वफ़ा-बेवफ़ा, माजी, मौजू और हरारत
प्यार का टोटका अच्छा है पर कभी-कभी
यह बारिश, वह सर्दी, या मरी गरमी
इकट्ठा जीना अच्छा है पर कभी-कभी
क्या कहा प्याज खरीदना, प्याज काटना
प्याज खिलाना अच्छा है पर कभी-कभी
ग़ुरबत तोड़ देती है बड़े-बड़े सपने तो क्या
ग़ुरबत का गर्व भी अच्छा है पर कभी-कभी