मैं ने जब उसे देखा
वह एक बुढ़िया की तरह बैठी थी
जाने किन बीती आहटों को
अपने में सुनती।
मैं ने धीमे-से पूछा
आ सकता हूँ दबे-पाँव ?
वह हँस दी
किसी मुग्धा की पहली
स्वप्निल हँसी
और इतनी युवा हो गयी
और सुन्दर
जितनी और कभी नहीं।
(1987)
मैं ने जब उसे देखा
वह एक बुढ़िया की तरह बैठी थी
जाने किन बीती आहटों को
अपने में सुनती।
मैं ने धीमे-से पूछा
आ सकता हूँ दबे-पाँव ?
वह हँस दी
किसी मुग्धा की पहली
स्वप्निल हँसी
और इतनी युवा हो गयी
और सुन्दर
जितनी और कभी नहीं।
(1987)