मैं प्रतिरूप तुम्हारा ही हूँ / बालस्वरूप राही
जो कुछ तुमसे मिला वही था सत्य, शेष मन की छलना थी।
अलसाई थी रात सभी सोये थे, केवल मैं जगता था
चांद उतर आया हाथों में, बार-बार मुझको लगता था,
प्रथम किरण उभरी प्रभात की, तंद्रा टूटी मैंने देखा
और तभी, वह चांद नहीं था, केवल दर्पण की छलना थी।
जो कुछ तुम से मिला वही था सत्य, शेष मन की छलना थी।
कई बार मुझको जीवन में कुछ ऐसा आभास हुआ है
किसी सांस ने जैसे मेरा अकुलाया सा श्वास छुआ है
पलक मुंदी थी वह समीप था, पलक खुली मैंने पहचाना
आया गया न कोई, केवल धूमिल लोचन की छलना थी
जो कुछ तुमसे मिला वही था सत्य, शेष मन की छलना थी।
वैसे तो मुझसे दुनिया में कितनों ने सम्बन्ध जताये
आज किन्तु लग रहा हृदय को, तुम्हीं सगे हो शेष पराये
आज मुझे आभास हो रहा, मैं प्रतिरूप तुम्हारा ही हूँ
मेरी और तुम्हारी दूरी, एक आवरण की छलना थी
जो कुछ तुमसे मिला वही था सत्य, शेष मन की छलना थी।