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मैं फिर आऊँगा समुद्र / अनिल जनविजय

समुद्र के किनारे आकर
समुद्र से न मिल पाया
लौट आया बीच से ही

कितना छटपटाया होगा समुद्र
कि भारत का एक कवि
उसके शहर में आया
और लौट गया उससे बिना मिले ही

समुद्र को भिजवाया
मेरा संदेश
उसको मिला जब
वह उत्तर में देगा उलाहना

मैं फिर आऊँगा, समुद्र
अगली बार, अगले ही महीने
फिर आऊँगा रीगा
और ठहरूँगा तुम्हारे ही पास

तुम्हारे और मेरे बीच
वर्षों का जो सम्बन्ध है
वर्षों की जो भावुकता है हमारे बीच
एक दूसरे के सुख-दुख की जो समझ है
प्यार का जो धागा है हमारे बीच
वैसा का वैसा है दोस्त
तुम मेरे दिल के उतने ही करीब हो
जितनी की यान्ना

अबकी बार यान्ना के साथ आऊँगा
और तुम्हारे गर्म अगाध स्नेह में डूब जाऊँगा
मैं फिर आऊँगा

(रचनाकाल : 1982)