मैं फिर से स्वागत करूंगी सूर्य का / फरोग फरोख़ज़ाद / श्रीविलास सिंह
मैं फिर से स्वागत करूंगी सूर्य का
स्वागत करूंगी उन धाराओं का जो कभी बहती थीं मुझमें
उन बादलों का जो थे मेरे लहराते हुए विचार
बगीचे के पॉपलर के पौधों की कठिन वृद्धि
कौन मेरे साथ था अकाल के मौसमों से गुजरते समय
मैं स्वागत करूंगी कौवों के झुंड का
जिन्होंने दिया है मुझे बाग से आती रात की महक का उपहार
और अपनी माँ का जो आईने में रहती थीं
और थी मेरी वृद्धावस्था का प्रतिविम्ब।
एक बार फिर मैं धरती का स्वागत करूंगी
जिसका प्रज्ज्वलित उदर फूल जाता है हरे बीजों से
मेरे पुनःसृजन की लालसा में।
मैं आऊंगी, मैं आऊंगी, मैं जरूर आऊंगी
मेरे केशों से उड़ रही होगी मिट्टी की सुगंधि
मेरी आँखें सूचित कर रही होंगी अंधेरे की सघनता
मैं आऊंगी दीवार के दूसरी तरफ की झाड़ियों से चुने
गुलदस्ते के साथ।
मैं आऊंगी, मैं आऊंगी, मैं जरूर आऊंगी
दरवाजा प्रदीप्त होगा प्रेम से
और मैं एक बार फिर स्वागत करूंगी उनका जो प्रेम में हैं,
स्वागत करूंगी उस लड़की का जो खड़ी है
डयोढ़ी की लपटों में।