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मैं बचा रहूँगा तुममें / गौरव गुप्ता

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तुम भले ही
दरवाज़ा बन्द कर दो
खिड़कियों के काँच को पर्दे से ढंक दो
मेरे भेजे उपहार को म्युनिसिपालिटी के कूड़ेदान में डाल आओ
चिट्ठियों को सर्दियों के अलाव में ताप जाओ
अपने शरीर से रगड़ कर साफ कर दो मेरे चुम्बन के निशान
इन सब के बावजूद मैं लौटता रहूँगा तुम तक
बार-बार
नींद का स्वप्न बन
सिवाय गहरी नींद से उठ जाने के तुम्हारे पास कोई तरकीब नहीं है मुझसे दूर चले जाने की
और तुम असहाय महसूस करोगी उस क्षण किसी स्लिप पैरालिसिस की रोगी की तरह
तुम्हारी जिंदगी में मेरी उपस्थिति के सभी निशान
मिटा देने के बाद भी
मैं बचा रहूँगा तुममें
जैसे बचा रह जाता है सड़कों पर, वहाँ गुजरे यात्रियों के पैरों के निशान
मेरे होंठों ने चखे है तुम्हारी आत्मा का स्वाद
वहाँ नहीं पहुँचता दुनिया की किसी साबुन का झाग
घण्टों सावर के नीचे बिताने की कोशिशें तुम्हारी होंगी नाकाम
तुम भले ही
मेरी आवाजें व्हाट्सअप नोट्स से डिलीट कर दो
मेरी तस्वीरें फोन गैलेरी से ख़ाली कर दो
तुम्हारी आँखें अब भी मेरी तस्वीरों को पहचानने से नहीं कर सकती इनकार
मैं गूंजता रहूँगा तुम्हारी उदासियों में,
तुम्हारी आत्मा ने सोखी हैं मेरी आवाजें
मैं पड़ा रहूँगा तुम्हारे मन के रिसाइकिल बिन में
रिस्टोर की इच्छा से लबालब।
मृत्यु सबकुछ खत्म कर सकती है सिवाय कहानियों के
और मैं वह कहानी हूँ
जिसे तुमने अपनी नींद में भी दोहराया है।