मैं बच्चा / अनिता भारती
मैं अजन्मा
सतमासा बच्चा
नहीं पता
लड़का हूँ कि लड़की
नहीं पता
जिन्दा हूँ कि मृत
मेरी भी माँ
मुझे गर्भ मे पा
गर्व से हँसी- खिलखिलायी थी
उसकी खुशी
मेरी नन्ही जान में समायी थी
बड़े भइया से अपने पेट पर
रखवा हाथ खुशी से
बुदबुदायी थी
देख,
तेरे लिए लाऊंगी खिलौना
बोल, भइया चाहिए या बहना?
मां को नहीं पता था
उसके बड़े लाडले के हिस्से में
ना भाईया है ना बहना!
कल तक मैं
माँ की लोरी सुन
बढ़ रहा था
मां के संग आनन्द के झूले
झूल रहा था
मां से खाना खा
घुटर-घुटर
अन्दर धमाचौकड़ी मचाता
तब वह मुझे हल्के से चपत लगा
मुस्कुरा उठती
और उसका चेहरा दमक उठता।
एक दिन जब मैं सुख की नींद
सो रहा था
मैंने देखा
माँ चीखती-चिल्लाती भाग रही थी
मैं चौंक कर उठ गया
माँ बोल रही थी
बचाओ-बचाओ, अरे मार डाला
वे क्रूर हत्यारे मेरे पिता को पीट रहे थे
मेरे पिता का कसूर
बस इतना था कि
उसने गांव के दबंगों की
बेगारी करने से
मना कर दिया था
माँ का पिटते पिता को
तड़पकर बचाना
और उन्हें बचाने के लिए
शोर मचाना, गुहार लगाना
उन्हें न सुहाया
वे जालिम और भी क्रोध से हुंकार उठे
अरी, चमारिन हम पर चिल्लाती है?
अब देख
तेरी कैसी शामत आती है...
यह कहते हुए
उन्होंने झट
मेरी माँ की चोटी पकड़
नीचे घसीटते हुए
सरेआम घुमाया
मेरी माँ पेट पर रख हाथ
मुझे बचा रही थी
तभी उनमें से एक चिल्लाया
देख इसके पेट में चमार का जाया
निकाल खींच साले को
नहीं तो अपने उस बड़े बाप की तरह
हमारे सिर चढ़
कलेक्टर बन जायेगा
और हमारे साथ ज़बान लड़ायेगा
मैं सिहर, डर से
माँ के और अन्दर घुस गया
मुझे पता था
कुछ महीने पहले भी भरे चौक पर
मेरी एक चाची के पेट से
चीर बच्चा निकाला था
क्या मेरा भी वही हश्र होने वाला है?
मेरे दिल की धड़कन कुछ बढ़ गई
मैंने घबराकर
अपनी आँखें बन्द कर ली
उन्होंने मेरी मां के पेट पर
ज़ोर से लात मारी
वो सीधी मेरे अन्दर जा कर लगी
मैं और मेरी माँ जोर से
कराह उठे
मेरी माँ सड़क पर
और मैं अन्दर बेहोश।
तब से अब तक
मैं पेट के अन्दर
दिन- रात
दर्द की पीड़ा से झटपटाता हूँ
और मेरी माँ बाहर से।