भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं बागी तो कोनी होयग्यो के / किशोर कल्पनाकांत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आजकाल म्हारै अेक ऊतरै‘र अेक चढै!
'के ठा' कुण...?
अेक जणो मांय-मांय लाल-किताब पढै!
रैय-रैय म्हारा रूंगटा फूल उठै!
कंई करण-धरण री मनस्या
म्हारी नस-नस फड़क उठै!
उकसीजतो-
म्हारो अणु-अुण चेतण‘ चंचळ होवै
बावळा! जूण नै अैळी क्यूं खोवै?
म्हारी आंख्यां मांय प्रगटावै
खड्गधारणी कंकाळी!
फैंऽफट बजावै ताळी
बावमंडळ मांय गूंज उठै किलकारयां
ऊभी है धार नै पलारयां
बोम मांय बीजळयां सी कड़कै
सांयत बिरमांड मांय अेक सळी-सी रड़कै!
कठैई बगावत-सी भड़कै!
भवानी बोल!
तू के चावै ? ...मुंडमाळ?
मत हो देवी, तू इतरी विकराळ!
 तू तो है म्हारी पवित्र कामना: चावना
निरमळ-भावना
म्हारै साधक नै क्यूं बणावणो चावै कपाळी?
मिट जासी म्हारी सिरजणा
थारी‘र म्हारी सिरजणा
आ सिरस्टी उण जावैला बेडोळ!
म्हारै तांडव सूं ऊपनैला भूडोळ!
कठैई नीं रैय जावैला सोवणापो
ठावो राखण दै, म्हनै म्हारो आपो!
इयां हिण-तणी खितिजां नै क्यूं नापो?
रूप: बण जावैला विद्रूप
जिको तू रैवण दै!
दुख-भिखा म्हारा है
मनै-ई सैवण दै!
जूण-न्यावणी नै मझधार मांय-ई बैवण दै!

मैं तो सृष्टा हूं
विणास री कियां करूं: कामना-चावना?
पण कंकाळी बणगी है अबै म्हारी भावना!
क्यूंकै म्हारै बिरमांड मांय
बरस रैया है बळबळता अंगारा
म्हारी सांसां मांय ऊपड़ीज रैयी है
बाळूं जाळूं करतोड़ी धपड़बोझ लपटां!
म्हारो सरबस सिळग उठयो है!
म्हारो गीत बणग्यो है काळभैंरू
म्हारी कल्पना बणगी है काळरातरी
सायुज्य है
डर-भौ, दुख-पीड़ा, सुख सोरप, मोह-ममता
प्रेम-घिरणा
सगळा-ई भाव-विभाव
ओ‘लै नीं रैयग्यो है
मिनख रो आतमघाती-सुभाव!
म्हारै डील उपरां
रूं-रूं उभरीजग्या है घाव
हरेक घाव सूं उपड़ीज रैयी है मर्मान्तक-पीड़!
पीड़ माथै फेर-फेर
मार रैयो है कोई धम्मीड़!
अठै-लग‘क घायल होयगी है आतमा!
बोल, परमातमा!
मैं अब के करूं ?

म्हारै साथै सूं बारम्बार
टकरीज रैयो है अेक सबद
उणरी अेक-अेक टक्कर सूं
गूंज उठै
सैंसूंसैंस सबद
बै-
उण अेक-ई सबद री पड़गूंजां है
उणरा-ई पर्याय, का अर्थ
म्हारै पीड़ायीज्यै होठ-अधर
उभरायीजै अेेक मुळक
अेक पुळक नैणां मांय चिलक उठै!
म्हारो कंठ
दुसरावणी चावै उण सबद नै
उणसूं पड़गूंजता सुरां नै
मैं अैकठ करूं मांयलै बळ नै
पण सबद नीं उचरीजै!
अेक लाल-गिचळको
म्हारी आंख्यां रै सामै आय पड़ै।
म्हारी पथरायीजती दीठ
सावळ जोवणो चावै!
रगतपिंड...!
सैसूं सैंस सबदां रो पुंजीभूत सरूप ...
उण अेक सबद रो सांवठो आकार!
आज म्हारै सामै है
परमात्मा साकार!
बोल, परमात्मा!
अबै मैं के करूं ?

म्हारो अणु-अणु कथणो चावै
मांयला-
अणत सबदां नै मथणो चावै।
पैलो-रतन नीसरयायो
मैं पीयग्यो हूं
पीयां जाय रैयो हूं!
म्हारै नसो चढ्यां जावै
मैं नाचूंला...
तांडव-निरत!
म्हारा होठां रा बीयाबाण-धोरां सूं
उपड़ीज रैया है ठौड़-ठौड़ भंबूळिया
अै-ई है बै गीत!
जिका काळभैरूं बणग्या है!
म्हारी आंख्यां मांय नाच्या करती
अेक बाल-परी!
बा-ई सागण-
धर लीन्यो है कंकाळी-रूप
म्हारी पलक्यां री कारां तळै
बस्या करतो-
कामना रो अेक सोनल-देस
जिण मांय गूंज्या करतो
अणहद रो संगीत
पण बो देस
बस्यां पैली उजड़ग्यो है!
कोई कंठ मोस नाख्या है
उण अणहद-संगीत रा
मैं घणो बेचैन हूं
म्हारो कपाळी गीत आवै है
संकळप दिरावै
‘हरि ऊं तत्य्द्यतस्य....’!

उकसावै मनै
म्हारै ई अन्तस रो विराट
म्हारी गरिमा, लघिमा, अणिमा
खोल दीन्या है कपाट!
अजेस तू जींवतो-जागतो है
मर नी सक्यो है
मर नी सकैला!
उठ! सैंपूर उठ!!
उखाड़ नाख समाज रा तम्बू!
जिका थारै कामना रै देस
नाजायज तणीजग्या है
उपाड़ दै-
राज रा रीत-नेमां रा खूंटा!
ज्यां रै-
आं तम्बुवां री डस बच्योड़ी है!
उतार दै छोत-
बां गळयां-सिड़या खोपड़ां री
आदर्सां रा पाखंडी होकड़ां री
जिकां रा असली उणियारा
आं तम्बुवां मांय ल्हुक्योड़ा है!
गोड़ा तोड़ नाख-
बां मरतल-पड़तल डोकरां रा!
दिमागी-नौकरां रा!
फिल्मी-स्यारखा जोकरां रा!
जिका राज रा खूंटां सूं बंध‘र
आं तम्बुवां नै ताण्या है
क्यूं‘क
आपरा कुकरमां री रिछपाळ सारू
ताण्या है अै तम्बू
गाडता रैवै नित-नुवां
रीत-नेमां रा खूंटा
उकसावै मनै
म्हारै-ई अन्तस रो
विराट!
‘हरि ऊं तत्सवितुरवरेण्य..’!