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मैं भी आख़िर एक हूँ हिस्सा वतन का / कैलाश झा 'किंकर'
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मैं भी आख़िर एक हूँ हिस्सा वतन का
याद रखता हूँ हरिक नारा वतन का।
धार गंगा कि नहीं अब कुंद होगी
आस्था से देखता बच्चा वतन का।
आसमां में जब तिरंगा है फहरता
गर्व से करता हूँ तब सजदा वतन का।
हिन्द का संदेश जब भी पार पहुँचा
तब हुआ चौड़ा बहुत सीना वतन का।
जब वतन पर आँच आती है कभी भी
जागता है पूत हर सच्चा वतन का।