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मैं भी माँ हूँ / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
एक सपना
सूखे बीज की तरह
दबा रहा बरसो
मेरी कोख में
प्रेम-वर्षा में आकाश के
भीगकर कुछ पल
अंकुरित हुआ
बढ़ने लगा
अपनी छाती का रक्त पिलाकर
पाला उसे
बरसात में सूखा रखा
ग्रीष्म में नम
आज वह सबल, सक्षम वृक्ष है
पिता से हँसता-बतियाता है
दुनिया को देता है फल-फूल भरपूर
झुककर नहीं देखता कभी मेरी ओर
उसकी नजर में
मैं सूखी-बंजर जमीन हूँ
उसकी सफलता में कहीं नहीं हूँ
मैं भी जाने कैसी माँ हूँ !