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मैं भूली बिसरी याद, टूटा ख्वाब होने वाला हूँ / फ़रीद क़मर
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मैं भूली बिसरी याद, टूटा ख्वाब होने वाला हूँ
तुम्हारी ज़ीस्त का अधूरा बाब होने वाला हूँ
तुम्हारे बस में हो अगर तो बढ़ के रोक लो मुझे
मैं तुमको भूलने में कामियाब होने वाला हूँ
सिमट रही हैं रफ्ता रफ्ता ग़म की अब सियाहियां
मैं धीरे धीरे एक आफताब होने वाला हूँ
ये डर है तुझ पे उंगलियां उठें न दुनिया वालों की
मैं सब के सामने खुली किताब होने वाला हूँ
तेरी निगाहें-नाज़ देख झुक न जाये शर्म से
मैं तेरे हर सवाल का जवाब होने वाला हूँ