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मैं मगन मन / केदारनाथ अग्रवाल

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एक तारा है गगन में
एक तारा है भवन में
एक तारा है नयन में
तीन तारों की लगन में
मैं मगन मन
वारुणी विष पी रहा हूँ
पी रहा हूँ- पी रहा हूँ।

गमगमाती
गीत गाती
मौत की मउहर बजाती
नाचती-पल छिन नचाती
जिंदगी मैं जी रहा हूँ
जी रहा हूँ-जी रहा हूँ

रचनाकाल: २५-०१-१९६१