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मैं मुफ़्लिस का बच्चा हूं / नज़्म सुभाष
Kavita Kosh से
चार दिनों से भूखा हूं
मैं मुफ़्लिस का बच्चा हूं
गम है, मुझको अपना ले
दर्द भरा इक नग़मा हूं
परछाई का जिस्म पहन
सूरज से वाबस्ता हूं
रातों के सन्नाटे से
जान बचाकर लौटा हूं
आदर्शों की क़ीमत पर
घुन- सा पिसता रहता हूं
तू ए. सी. में हांफ रहा
मैं तो लू में ज़िन्दा हूं
नज़्म अगर था,क्या था वो
ज़हनोदिल से भूला हूं