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मैं यही सोंच कर बाज़ार तक आ पहुंचा हूँ / आनंद कुमार द्विवेदी

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बदगुमानी है, या ऐतबार तक आ पहुंचा हूँ,
जो भी हो आपके दरबार तक आ पहुंचा हूँ

आज भी, उसको खिलौने पसंद हों शायद
मैं यही सोंचकर बाज़ार तक आ पहुंचा हूँ

जिसको देखो वो यहाँ बेखुदी में लगता है
मैं भी शायद दरे-सरकार तक आ पहुंचा हूँ

मुझको मांझी का पता था न खबर मौजों की
हौसला देखिये, मझधार तक आ पहुंचा हूँ

मैं उसे खोजने निकला था सितारों कि तरफ
खोजता खोजता संसार तक आ पहुंचा हूँ

जबसे ‘आनंद’ की हालत नज़र से देखी है
दिल्लगी! मैं तेरे इंकार तक आ पहुंचा हूँ