भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं याद आता हूँ / रवीन्द्र दास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं याद आता हूँ
अपनी उस प्रेमिका को ,जो मेरी पत्नी नहीं
जब-जब उसका सचमुच वाला आदमी
मेरे किए हुए वादे नहीं करता पूरा
तब तब
मैं उसे याद आता हूँ
पति नहीं हो सकना - मेरी बेवसी थी
पत्नी हो जाना उसकी ज़रूरत
अब भी लगता है ,
उन दिनों ,
हम एक दूसरे को बहुत भाते थे
बहुत दिनों तक
बिछड़ने के भय से हम रोए थे
साथ साथ
उसने बताया शादी के बाद
वो बहुत अच्छे हैं
लेकिन जब भी मैं बच्चों की-सी जिद करती हूँ
वो डाट देते है
तब तुम बहुत याद आते हो .....