मैं लिपटकर तुम्हें स्वप्न के गाँव की / राजेन्द्र राजन (गीतकार)
मैं लिपटकर तुम्हें स्वप्न के गांव की
इक नदी में नहाता रहा रात भर
कोई था भी नहीं, ज़िन्दगी की जिसे
मैं कहानी सुनाता रहा रातभर ।
मैंने छू भर लिया, क्या गज़ब हो गया
मखमली जिस्म से उठ रहा था धुआँ
मन लगा तोड़ने तब सभी साँकलें
इक परिन्दे को ज्यों मिल गया आसमाँ
हो गया वृद्ध लाचार संयम विकल
चीख़कर चरमराता रहा रातभर ।
दो इकाई-इकाई गुणा हो गईं
धीरे-धीरे निलम्बित हुईं दूरियाँ
एक भी मेघ आकाश में था नहीं
किन्तु महसूस होती रहीं बिजलियाँ
थी अन्धेरों भरी रात छाई मगर
मैं दिवाली मनाता रहा रातभर ।
एक अपराध भी तप सरीखा हुआ
बँध गए हम किसी साज़ के तार से
दस दिशाएँ प्रणय गीत गाती रहीं
शब्द झरते रहे आँख के द्वार से
था अजब मदभरा एक वातावरण
मैं स्वयं को लुटाता रहा रातभर ।