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मैं वही दर्पण वही ना जाने ये क्या हो गया / रविन्द्र जैन
Kavita Kosh से
मैं वही दर्पण वही, ना जाने ये क्या हो गया
कि सब कुछ लागे नया नया
इक जादू की छड़ी, तन मन पे पड़ी
मैं जहाँ की रे गई वहीं पे खड़ी
घर वही, आँगन वही, ना जाने ...
कहीं दूर पपीहा बोले पिया पिया
उड़ जाने को बेकल है मोर जिया
दिल वही धड़कन वही, ना जाने ...