मैं शादी करना चाहता हूँ / जगन्नाथ त्रिपाठी
मैं शादी करना चाहता हूँ
सज्जनो!
मैं एक शुद्ध-सात्विक
कान्यकुन्ज ब्राह्मण कुमार हूँ
मेरी माँ, ममता की मूर्ति
मेरा पिता, उदारता की प्रतिमा
शस्य-श्यामला
कोमला विश्वम्भरा
मेरी शय्या
बुद्धि वादिता मेरा खेल
पठन-पाठन
मेरी नैय्या
स्वयं भी हृष्ट-पुष्ट
स्वस्थ और सुघर हूँ
सदाचार से मण्डित
ईमानदार सुविचार हूँ
लोग कहते हैं
बुद्धिमान, यशस्वी
होनहार हूँ-
गोत्र मेरा कश्यप
ब्राह्मण कुलवान हूँ
जीवन में पुलक है
आँखों में ललक है
अधरों में सिसक है
दिल में कसक है
पाने की - यौवन के मंच पर
पाने की उस लड़की को
जिसे मेरा जीवन-साथी बनना है
शूलों में फूल बनकर खिलना है
संसार के सड़े-गले
माँसल बाज़ार को
साथ-साथ रहकर
सुनहरा बनाना है.........
एक दिन
आधुनिक बाज़ार में
शोबाजी के चमकीले संसार में
फ़ैशन-परस्ती के छैल-छबीले
आलम में
मैने देखा था...............
देखा था उस दुबली पतली तन्वंगी बाला को
भारतीय साड़ी पहने
गोरी चिट्टी लड़की को
पर,
तबसे वह दिखी नहीं
भल-भल खोजा, हाय!
वह मिली नहीं
‘दैनिक जागरण’, ‘विश्वमित्र’, ‘आज’ में
‘पायनियर’, ‘टाइम्स‘ ‘ब्लिट्ज‘ और ‘लीडर’ में
‘नेशनल हेराल्ड‘ और ‘नार्दर्न इण्डिया’ पत्रिका के, मैट्रीमोनियल कालम में
बार-बार किया
आत्म-प्रकाशन
पर,
कहीं से उसका ‘आफर‘
नहीं आया।
लगता है कहीं
गायब हो गई।
उसकी याद में
मैं बेचैन, अधीर, आकुल-अशान्त हूँ।
घुटता हूँ घुलता हूँ
घुट-घुट कर जीता हूँ
पग-पग, पल-पल
बिरह में छटपटाता हूँ -
उसके बिना मेरा वर्तमान सूना
और, भविष्य
अन्धकारमय।
इसी बीच
मानसिक अन्तर्द्वन्द्व -ग्रस्त
खोये-खोये-से, भूलते, भटकते
भरमाते,
इस राही को
एक अन्तर्यामी ज्योतिषी ने बताया-
भोले युवक!
जिसकी खोज में
तुम पागल और व्याकुल हो
नव युग के मेले में
उसे कुछ घोर भौतिकतावादी
नकलची छैले
भगा ले गये
सज्जनो !
जबसे मैने यह सुना
सच कहता हूँ
निशि वासर जगता हूँ
सपने देखता हूँ
उसकी बाट जोहते जोह़ते
मेरी आँखे पथरा गईं।
वह मेरी जिन्दगी की प्रेरणा है
वही मेरा गीत
वही मेरी कविता
मेरे इस जीवन की देवी
और,
उस जीवन की अभीप्सिता
मुझे उसकी जरूरत है
सख्त जुरूरत है
बेहद जरूरत है -
मैं उससे शादी करना चाहता हूँ
आपसे नम्र निवेदन है
जहाँ भी
जब भी, आप पायें, कृपया
उक्त पते पर पहुँचा दें
राह-खर्च के अतिरिक्त
काफी इनाम भी
दिया जाएगा
लड़की का नाम है-
‘कुमारी मानवता’