सपनों को हाथ में लिए 
पीतल का एक फूलदान 
बनाता हूँ
और एक गोल फ़व्वारा 
जिसके बीच एक सुन्दर सी मूर्ति है ।
टूटे हुए दिल से 
एक गीत गाता हूँ 
और तुमसे पूछता हूँ :
क्या मेरा सपना तुम्हें समझ में आता है ?
कभी तुम हां कहती हो,
कभी कहती हो — नहीं, समझ में नहीं आता ।
कुछ भी हो, 
कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता ।
मैं सपना देखता रहता हूँ ।
 मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य