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मैं सोचती हूँ / रति सक्सेना
Kavita Kosh से
मैं सोचती हूँ
उन सब के बारे में
जो मेरे सफर के साथी हो सकते थे
फिर सफर कहाँ रह पाता सफर
बीत जाता वक्त, लड़ने समझने में
क्या फिर घूँट-घूँट पी पाती सफर को?