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मैं हँसता हूँ, मैं रोता हूँ / दिलीप चित्रे / तुषार धवल

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मैं हँसता हूँ।
मैं रोता हूँ।
मैं मोमबत्ती जलाता हूँ।
मैं शराब पीता हूँ।
 
मेरी आँखें अभी भी मैली हैं प्यार से।
मेरा मुँह
गन्दलाया हुआ गीत से।
कविताएँ जूँ की तरह हैं मेरे बालों में।

उस रोमॅन्टिक ने कहा।
बम्बई के एक दारु के अड्डे पर बैठ कर।
वर्षों के पसीने से काली हुई लकड़ी की बेंचें।
एक नंगा बल्ब अपनी मलिन धुन्ध पसारता कमरे में
मडोना और होली चाइल्ड दीवार पर फीके पड़ते हुए।
 
त्रासदी में थोड़ा और सोडा मिला कर
हमने उसे गटक लिया।
एक ने कहा एशिया जल रहा है।
भारत का उदय होगा।
बाहर बम्बई कै की तरह है।
रात में चमकती हुई।
 
हे प्रभु !
हमारे अज्ञान और
हमारे ठसाठस भरे ट्रैफ़िक को
और
भड़कीले पर्दों के पीछे सम्भोग की बासी महक को
माफ़ कर दो।
  
माफ़ कर दो हमारी सामूहिक आवाज़ों
और हमारी आवाज़-हीनता को।
 
इन दृश्यों से हम अलग पड़ जाते हैं
कीचड़ भरी गलियों में
हम चलते हैं ब-मुश्किल
बचते हुए ज़िन्दगी से एक बजे
अलस्सुबह ठीक तब
जब हमारा दिन ख़तम होता है।

अँग्रेज़ी से अनुवाद — तुषार धवल