मैं हर बार मुसलमान बना दिया जाता हूँ / शमशाद इलाही अंसारी
ये मेरा शहर
जिंदगी और उसकी जुस्तजू से
लबरेज़ शहर
जाने क्यों अ़ज़ीज बन गया है
इंसानियत के गुनहगारों का?
जो- एक के बाद एक
करते हैं हमले
कभी कत्ल करते राहगीरों का
कभी होटल,कभी रेलवे स्टेशनों
तो सफ़र करते ट्रेनों के डिब्बों में
भर देते बारुद
और जमीन से अखबार तक
भर देते मासूमों के खून से
फ़िर देखते तमाशे
पर्दों के पीछे परदों मे बैठ कर
करते हिसाब लाशों का
जुट जाती देश भक्त पुलिस
उठा लाती रातों रात
भर देती जेलों की कोठरियां
पकड-पकड कर लाती दाढ़ियां
देती प्रताडना
असंख्य मजबूरों बे सहारों को
लगाती उन पर भारी भारी इल्ज़ाम
कभी पोटा तो कभी रासुका
माहौल ही ऐसा बनता
हर बार हर धमाके के बाद
कि पुलिस की हर कार्यवाही
पहन लेती देश सेवा का एक मज़बूत कवच
और ढूंढ़ती तहमदों, कुर्तों, दाढ़ियों और इबादत गाहों में
खास देश द्रोहियों को
नहीं लिखता कोई अखबार
जिनकी खबरें
कि कैसे दे गयी प्रताड़नायें
बेटी को करते बाप के सामने ज़लील
देते भर भर पेशाब के प्याले
देते ताने..कि क्यूं नही जाते
पडौस वाले मुल्क में
और फ़िर..
कोई सिरफ़िरा
कर देता असीमनंद जैसा खुलासा
धरी रह जाती वो लगायी तमाम तौहमतें
सही गयी ज़लालतें
दी गयी यातनायें
कोई नहीं मांगता हिसाब
साल दर साल जेलों कें ढूंसे रखने का
पड़ जाते मानवाधिकार वालों के मुंह में ताले
कोई नही बनता उनकी जुंबान
जो इस देश में पैदा होता
सिर्फ़ यहीं मरने के लिये
करता जीने की जुस्तजू
बनाते अपने नशेमन, जी तोड मेहनत के बाद
जिसे कर देते बर्बाद
कुछ धमाके
तोड़ देती सभी कसरतें
सारी मशक्कतें
आपसी मौहब्बतें
कोई रोक नहीं पाता
जब ले जाती पुलिस, सलीम को
मौहम्मद को
कोई..कुमार..कोई सिंह नहीं बोल सकता
जब सवाल देश का बना दिया जाये
रात-दिन बरसते है चैनल
खोज में लग जाते चूहों की
तय कर देते..सारे जुर्म
बिना किसी अदालत के
सुनवायी के
कोई नहीं बताता
कितने पकडे गये कल रात से अब तक.
धमाके होने के बाद
मेरे शहर में
पूरी एक कौम को
देखते शक से
शक का माहौल गरमा जाता
अखबार-टी.वी. सब मिल कर कर देते साबित
कि मैं ही हूं अपराधी
मैं खुद को भी अब शक से देखता
मुझे कब पकड ले जाये
खाकी पुलिस वाला
देश सेवा के नाम पर
कभी भी कर दे मेरा एन्काऊंटर
लगा लेगा एक दो तमगे अपनी छाती पर
पर, मेरी खबर
मेरे जहन की खबर
नहीं बनती सुर्खी
किसी अखबार की
किसी टी.वी की
हां,
कसाब को बिरयानी पंसद नही आयी
वह बोर हो गया उसे खाते खाते
यह एक खास खबर है
और हमें पढ़वायी जाती है
हमें सुनायी जाती है.
कल रात से
जब से धमाके हुए हैं
मेरे हंसते खेलते
जिंदगी से भरपूर शहर में
मैं खौफ़ज़दा हूँ
अपने कमरे में सुन्न पडा
हर कदमों की आवाज़ सुनता हूं
कहीं यह भारी बूट तो नहीं?
ये कमबख़्त बमों के धमाके
ये दहशगर्द की जल्लादी हरकतें
मुझे यकायक अहसास दिला देती हैं
कि
मैं मुसलमान हूँ.
जब भी सड़कों पर
मासूमों का खून बिखरता है
मैं हर बार मुसलमान बना दिया जाता हूँ
मैं हर बार गुनहगार बना दिया जाता हूँ.
मैं
जब जब करता हूँ
इंसान बनने की कोशिश
मैं हर बार मुसलमान बना दिया जाता हूँ
मैं हर बार गुनहगार बना दिया जाता हूँ.