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मैं हार नहीं मानूंगा, तो तुम जीतोगे कैसे / पंकज चौधरी

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मैं हार नहीं मानूंगा
तो तुम जीतोगे कैसे

मैं रोऊंगा नहीं
तो तुम हंसोगे कैसे

मैं दुखी दिखूंगा ही नहीं
तो तुम सुख की अनुभूति करोगे कैसे

मैं ताली ही नहीं बजाऊंगा
तो तुम ताल मिलाओगे कैसे

मैं अभिशप्‍त नायक ही सही
लेकिन तू तो खलनायक से भी कम नहीं

मैं खुद्दारी की प्रतिमूर्ति ही सही
लेकिन तू तो किसी पतित से कम नहीं

माना कि प्रकृति भी मेरे साथ नहीं
लेकिन प्रकृति भी तो सदैव तेरी दास नहीं

तुम मुझे क्‍या अपमानित करोगे
तुम तो खुद सम्‍मानित नहीं

तुम मुझे औकात में क्‍या रखोगे
तुम्‍हारी खुद की तो कोई औकात नहीं

तुम मुझे क्‍या डराओगे
तुम तो मुझसे खुद डरते हो

मेरे ऊपर तुम क्‍या शक करोगे
विश्‍वास तो तुझे खुद अपने ऊपर भी नहीं

तुम मेरा रास्‍ता क्‍या रोकेगे
तुम्‍हारा रास्‍ता तो अपने आप है बंद होने वाला

मेरी इज्‍जत तुम क्‍या उतारोगे
तुम्‍हारी इज्‍जत तो खुद है तार-तार

तुम मेरा इतिहास क्‍या खंगालोगे
तुम्‍हारा इतिहास तो खुद है दाग-दाग

मैं राहु का वंशज ही सही
लेकिन तुम भी तो चंद्रमा के रिश्‍तेदार नहीं!