नहीं, कविता रचना नहीं
सुबूत है कि
मैं ने अपने को रचा है।
मैं ही तो हो गया होता हूँ शब्द
फुफकारते समुद्र में लील लिया जाकर भी
सुबह के फूल-सा खिल आता हुआ।
फूल में फूट कर
अपने को ही तो रच रहा होता है पेड़ !
अरे !
तो क्या तुम भी
मुझे रच कर ही
खुद को रच पाते हो ?
(1968)