मैं ही मुक्त न हुआ-2 / सुतिन्दर सिंह नूर
मैं प्रेम में बहुत गलतियाँ करता हूँ
और तुम
मुझे समझाने लगती हो बार-बार।
मैं गीतों की भांति
आसमान में उड़ती हुईं
अबाबीलों को पकड़ने लग जाता हूँ
तुम कहती हो-
ऐसा मत करो
ये आज़ाद ही अच्छी लगती है।
मैं झुण्ड में जागते जुगनूओं को
हाथ में पकड़ने लगता हूँ
तुम कहती हो-
ऐसा न करो
ये सब मर जाएंगे।
मैं बारिश के बाद
रेत पर चली जाती
लाल बीर-बहुटियों के
कदमों की बनती जंज़ीर को
सुलझाने लगता हूँ
मेरे साथ चलते हुए
तुम कहती हो-
ऐसे मत करो
कई बार ये रास्ते उलझ भी जाते हैं।
मैं हरी-भरी वादियों में से गुज़रते हुए
फूलों जैसी तितलियों को पकड़कर
तेरे कंधों पर रखने लगता हूँ
तुम कहती हो-
ऐसे मत करो
कई बार तितलियों का भार भी
बहुत होता है।
मैं प्रेम में
बहुत गलतियाँ करता हूँ
और तुम मुझे
समझाने लगती हो बार-बार।
मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : सुभाष नीरव