भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं ही हूँ / लीलाधर मंडलोई

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अभी-अभी धूप
अभी-अभी बारिश
अभी-अभी बर्फ़
अभी-अभी आग

अभी-अभी चीनी
अभी-अभी नमक
अभी-अभी पानी
अभी-अभी पत्थर

मैं अर्से से साथ हूँ उसके
और क्षमा प्रार्थी
कि उसके इस तरह बदलने में
मैं ही हूँ