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मैं / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

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मैं जंगली गाँवों से आया हूँ।
जानवरों में शामिल रहना
मेरे ज़िन्दा रहने का पर्याय है।
मैंने माँदों, बिलों और घोंसलों में
गुज़ारी हैं रातें।
दिन वहाँ कभी नहीं हुए।
मेरा पिता एक भालू था
जो एक विशाल अजगर से लड़ते हुए चल बसा
और अब मेरी प्रेमिका एक शेरनी है
जो अपने तेज़ पंजों और दाँतों से
मुझे प्यार करती है।
शिकारियों की गोलियों और कटते-ढहते पेड़ों के बीच
मैंने अपनी भाषा और इन्सानी आदतें खो दी हैं।
गो उम्मीद के बारे में मुझे कोई भ्रम नहीं।

क्योंकि बूढ़ा हो चला हूँ
अतः अब भी प्रतीक्षा कर सकता हूँ
क्योंकि अब तक जानवरों पर विश्वास किया है
अतः अब भी कर सकता हूँ।

मगर मैं अपने बच्चों को
साहसिक यात्राएँ करने की सलाह नहीं दूँगा।
मैंने खुद अपनी आँखों से
सूरज को डूबते हुए देखा है समुद्र में।